आज के समय में ज्योतिष की आलोचना क्यों बढ़ रही है? — एक गंभीर विमर्श
आज के समय में ज्योतिष की आलोचना क्यों बढ़ रही है? — एक गंभीर विमर्श
आज के डिजिटल युग में यदि आप यूट्यूब या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म देखते हों, तो आपने अवश्य अनुभव किया होगा कि कुछ ऐसे लोग, जिन्होंने कभी न कभी ज्योतिष का अध्ययन किया है, वही आज ज्योतिष और सनातन धर्म की आलोचना करते दिखाई देते हैं।
वे बार-बार कहते हैं कि “फलादेश के सूत्र गलत हैं, ज्योतिष सत्य नहीं है, हमने सभी ग्रंथ पढ़ लिए और निष्कर्ष निकाला कि यह विद्या निरर्थक है।”
विशेष रूप से कुछ लोग वीडियो बनाकर यह प्रचार करते हैं कि उन्होंने ज्योतिष के शास्त्र पढ़े और जीवन से मिलान किया, लेकिन फलादेश सही नहीं निकले—इसलिए ज्योतिष ही गलत है। यह दृष्टिकोण न केवल अधूरा है, बल्कि स्वयं ज्योतिष की गहराई को न समझ पाने का प्रमाण भी है।
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समस्या ज्योतिष में नहीं, फलादेश की समझ में है
सत्य यह है कि ज्योतिष के मूल सूत्र पूर्णतः शुद्ध, वैज्ञानिक और कालातीत हैं।
समस्या वहां उत्पन्न होती है जहाँ ग्रंथों में दिए गए संक्षिप्त फलादेश को अक्षरशः और बिना अनुभव के लागू कर दिया जाता है।
अधिकांश ज्योतिष ग्रंथों में दो–चार पंक्तियों में किसी योग या ग्रह स्थिति का फल लिखा गया है।
लेकिन वास्तविक जीवन में वही फलादेश—
देश
काल
सामाजिक परिस्थिति
व्यक्ति की चेतना
दशा–अंतरदशा
अन्य ग्रहों के संयुक्त प्रभाव
इन सबके कारण बदल जाता है।
इसीलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ग्रंथों में लिखे गए 50% से अधिक फलादेश आज के जीवन से सीधे मेल नहीं खाते, यदि उन्हें अनुभव और संशोधन के बिना लागू किया जाए।
जो लोग ज्योतिष की बुराई करते हैं, उन्होंने प्रायः—
केवल पुस्तक पढ़ी
वास्तविक कुंडलियों पर वर्षों तक शोध नहीं किया
हजारों जातकों से संवाद नहीं किया
और फिर निष्कर्ष दे दिया कि “ज्योतिष गलत है”।
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फलादेश अनुभव से आता है, केवल पढ़ने से नहीं
ज्योतिष में केवल श्लोक कंठस्थ कर लेना पर्याप्त नहीं है।
फलादेश एक साधना है, जो—
निरंतर 4–5 वर्षों तक
हजारों कुंडलियों के अध्ययन
प्रत्यक्ष जीवन घटनाओं के मिलान
और जातक से संवाद
के बाद विकसित होती है।
एक बार न्यूज़ 24 पर वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश पांडे जी ने भी स्पष्ट कहा था—
> “केवल ज्योतिष की पुस्तकें पढ़कर कोई ज्योतिषाचार्य नहीं बन सकता। इसके लिए निरंतर शोध, स्वयं का डाटा और अनुभव की फाइल बनानी पड़ती है।”
यह कथन आज भी उतना ही सत्य है।
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ग्रंथीय फलादेश बनाम वास्तविक कारण — एक उदाहरण
हाल ही में एक पुस्तक का अध्ययन करते समय एक कुंडली का उदाहरण सामने आया।
उस कुंडली में—
लग्नेश: गुरु
अष्टमेश: चंद्रमा
किसी भी व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट, गंभीर रोग या आयु संबंधी समस्या हो—तो मुख्य रूप से
👉 लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव और अष्टमेश का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है।
📘 पुस्तक में लिखा गया निष्कर्ष:
> “गुरु पर शनि और मंगल की दृष्टि होने से जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट हुआ।”
🔍 वास्तविक अनुभवजन्य विश्लेषण:
हजारों कुंडलियों के अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि—
गुरु पर राहु की दृष्टि
लग्न में स्थित अष्टमेश चंद्रमा पर केतु की दृष्टि
यही इस कुंडली की वास्तविक पीड़ा का कारण है।
केवल चंद्रमा के लग्न में होने से स्वास्थ्य संकट नहीं आता, क्योंकि सूर्य और चंद्रमा को अष्टम भाव का पूर्ण दोष नहीं लगता।
लेकिन जब चंद्रमा पीड़ित हो—तब मानसिक, शारीरिक और आयु संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
👉 पहली मार्किंग किताब के अनुसार थी
👉 दूसरी मार्किंग वास्तविक कारणों के अनुसार
यही अंतर अनुभव सिखाता है।
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अधूरी गणना से विद्या बदनाम होती है
अनेक पुस्तकों में यह देखने को मिलता है कि—
एक कुंडली पोस्ट कर दी जाती है
मनगढ़ंत गणनाएँ जोड़ दी जाती हैं
और गलत निष्कर्ष प्रस्तुत कर दिए जाते हैं
अब सोचिए—
ऐसी पुस्तकों से सीखकर नया विद्यार्थी क्या सीखेगा?
और वह किसी पीड़ित व्यक्ति को सही समाधान कैसे देगा?
यही कारण है कि ज्योतिष की आलोचना बढ़ रही है, जबकि दोष विद्या का नहीं, अधूरे अध्ययन का है।
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सच्चे ज्योतिष विद्यार्थी के लिए मार्गदर्शन
यदि आप वास्तव में ज्योतिष सीखना चाहते हैं, तो—
1. पहले ज्योतिष के मूल सूत्रों को गहराई से समझें
2. फिर धीरे-धीरे फलादेश करना प्रारंभ करें
3. सबसे पहले अपनी कुंडली पर प्रयोग करें
4. उसके बाद परिवार और मित्रों की कुंडलियों का विश्लेषण करें
5. दशा–अंतरदशा और वास्तविक घटनाओं का मिलान करें
6. अपना अलग डायरी / फाइल / डाटा संग्रह बनाते जाएँ
यही प्रक्रिया आपको वास्तविक फलादेश तक पहुँचाएगी।
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✨ निष्कर्ष
ज्योतिष न तो अंधविश्वास है, न ही पुस्तक का खेल।
यह एक अनुभवजन्य विज्ञान है, जिसे समझने के लिए धैर्य, शोध और साधना आवश्यक है।
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🕉️ अनुभव, शास्त्र और शोध — यही सच्चा ज्योतिष है।
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