8. असफल व्यक्ति को समाज क्यों तुच्छ समझता है? (भगवत गीता जीवन अमृत)
8. असफल व्यक्ति को समाज क्यों तुच्छ समझता है?
📖 “अवजानन्ति मां मूढाः” (भगवद्गीता 9.11)
🪔 अज्ञान ही अवहेलना का कारण है।
🌼 हीरा भी तब तक पत्थर है, जब तक पहचाना न जाए।
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समाज का एक कठोर और दुर्भाग्यपूर्ण सत्य यह है कि वह सफलता को पूजता है और असफलता को तिरस्कार की दृष्टि से देखता है। जो व्यक्ति ऊँचे पद पर हो, धन-संपन्न हो, नाम-यश कमा चुका हो—समाज उसके सामने झुक जाता है। पर वही व्यक्ति यदि संघर्षरत हो, असफलताओं से जूझ रहा हो, तो उसे “निकम्मा”, “अयोग्य” या “भाग्यहीन” कहकर खारिज कर दिया जाता है। प्रश्न यह नहीं कि असफल व्यक्ति क्यों दुखी है, प्रश्न यह है कि समाज उसे तुच्छ क्यों समझता है?
भगवद्गीता का यह श्लोक— “अवजानन्ति मां मूढाः”—गहरे सत्य की ओर संकेत करता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मूर्ख लोग मुझे पहचान नहीं पाते और मेरी अवहेलना करते हैं। यही प्रवृत्ति समाज में भी दिखाई देती है। समाज बाहरी उपलब्धियों को ही मूल्य मान लेता है, भीतर छिपे पुरुषार्थ, तप, संघर्ष और संभावनाओं को नहीं देख पाता। यही अज्ञान असफल व्यक्ति के प्रति तिरस्कार का मूल कारण बनता है।
1. सफलता को ही योग्यता मान लेने की भूल
समाज ने योग्यता का मापदंड बहुत सतही बना लिया है। आज योग्यता का अर्थ है—पैसा, पद, प्रसिद्धि। यदि ये तीनों किसी के पास हैं, तो वह योग्य है; यदि नहीं हैं, तो वह अयोग्य। जबकि सत्य यह है कि सफलता परिणाम है, योग्यता प्रक्रिया है।
एक व्यक्ति वर्षों तक ईमानदारी से प्रयास करता है, असफल होता है, सीखता है, गिरता है—यह सब योग्यता के लक्षण हैं। पर समाज केवल अंतिम परिणाम देखता है, यात्रा नहीं।
2. तुलना की संस्कृति
समाज तुलना पर जीवित है। “वह देखो, फलाँ तो इतनी उम्र में यह बन गया, और तुम अभी भी यहीं हो।” ऐसी तुलना असफल व्यक्ति को भीतर से तोड़ देती है। समाज यह नहीं समझता कि हर व्यक्ति की परिस्थितियाँ, संस्कार, कर्म और समय अलग होते हैं।
तुलना करने वाला समाज यह भूल जाता है कि बीज और वृक्ष की गति एक जैसी नहीं होती।
3. डर और असुरक्षा
असफल व्यक्ति समाज को इसलिए भी खटकता है क्योंकि वह समाज के भीतर छिपे डर को उजागर करता है। लोग अपने भीतर यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि वे भी कभी असफल हो सकते हैं। इसलिए वे असफल व्यक्ति को तुच्छ बताकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं—“हम तो उससे बेहतर हैं।”
यह तिरस्कार नहीं, बल्कि भीतर की असुरक्षा की अभिव्यक्ति है।
4. कर्म और भाग्य का अधूरा ज्ञान
भारतीय दर्शन कर्म और भाग्य दोनों को मानता है, पर समाज केवल परिणाम देखकर निर्णय करता है। असफल व्यक्ति के पीछे वर्षों का पुरुषार्थ, अदृश्य संघर्ष और पूर्व कर्म हो सकते हैं—पर समाज को इन बातों से कोई लेना-देना नहीं।
गीता कहती है—कर्मण्येवाधिकारस्ते—पर समाज कहता है—“फल दिखाओ, तभी मानेंगे।”
5. इतिहास का अंधापन
विडंबना यह है कि जिन महान व्यक्तियों को आज समाज पूजता है, वे अपने समय में उपेक्षित और तिरस्कृत थे।
कबीर को समाज ने नकारा
तुलसीदास को अपमान सहना पड़ा
विवेकानंद को विदेशों में भटकना पड़ा
अब्राहम लिंकन, थॉमस एडिसन जैसे लोग बार-बार असफल हुए
पर जब सफलता आई, तो वही समाज चरणों में बैठ गया। इससे स्पष्ट है कि समाज की दृष्टि दूरदर्शी नहीं, अवसरवादी होती है।
6. असफलता को दोष मान लेना
समाज असफलता को अपराध समझ लेता है। जबकि असफलता सीखने की प्रक्रिया है। बच्चा गिर-गिरकर ही चलना सीखता है। यदि पहली ठोकर पर समाज उसे “अयोग्य” कह दे, तो कोई भी चलना नहीं सीख पाएगा।
असल में असफलता व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाती है, पर समाज इसे कमजोरी समझ लेता है।
7. हीरा और पत्थर का दृष्टांत
हीरा भी खदान में पड़ा रहता है तो पत्थर ही लगता है। उसकी पहचान तब होती है, जब उसे तराशा जाता है। उसी प्रकार असफल व्यक्ति भी समाज के लिए तब तक तुच्छ है, जब तक उसकी प्रतिभा प्रकट न हो जाए।
पर प्रश्न यह है—क्या मूल्य पहचान से आता है या अस्तित्व से?
उत्तर स्पष्ट है—मूल्य पहले से होता है, पहचान बाद में।
8. असफल व्यक्ति वास्तव में कौन है?
जो व्यक्ति प्रयास छोड़ दे, वही असफल है। जो व्यक्ति गिरकर फिर उठता है, वह असफल नहीं—वह साधक है, तपस्वी है, भविष्य का निर्माता है।
समाज जिस व्यक्ति को तुच्छ समझता है, वही व्यक्ति अक्सर भविष्य में दिशा दिखाने वाला बनता है।
9. समाज को क्या सीखने की आवश्यकता है?
समाज को यह समझना होगा कि
हर संघर्ष दिखाई नहीं देता
हर सफलता तुरंत नहीं मिलती
हर असफल व्यक्ति निकम्मा नहीं होता
जब समाज यह सीख लेगा, तब वह अधिक संवेदनशील, न्यायपूर्ण और मानवीय बनेगा।
10. निष्कर्ष
असफल व्यक्ति को समाज इसलिए तुच्छ समझता है क्योंकि समाज अज्ञानी है, अधैर्यवान है और केवल बाहरी चमक को ही सत्य मानता है। गीता का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है—अवजानन्ति मां मूढाः—अज्ञान ही अवहेलना का कारण है।
अतः यदि आप आज असफलता के दौर से गुजर रहे हैं और समाज आपको तुच्छ समझ रहा है, तो निराश न हों। आप पत्थर नहीं हैं, आप हीरा हैं—बस समय की तराश बाकी है।
सही समय आने पर वही समाज, जो आज आपको नज़रअंदाज़ कर रहा है, कल आपके उदाहरण देगा।
🌼 संघर्ष को सम्मान दीजिए, सफलता स्वयं आपके चरण चूमेगी।
क्रमशः
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