सब लेखक है


सब लेखक है 

यहाँ हर कोई शायर है,
हर कोई कवि, हर कोई लेखक—
हर उँगली में दर्द टंगा है,
हर लफ़्ज़ खुद को सच समझता है।

सबके पास कहानियाँ हैं,
सबके पास ज़ख़्मों का ढेर,
पर सुनने की फुर्सत किसी को नहीं,
क्योंकि हर कोई बोलने में मशगूल है यहाँ।

यहाँ दर्द भी अब प्रतियोगिता है—
किसका ग़म ज़्यादा गहरा,
किसकी पीड़ा ज़्यादा वायरल,
किसकी पंक्तियाँ ज़्यादा बिकाऊ।

काग़ज़ पर नहीं,
अब दर्द स्क्रीन पर बहता है,
चार तालियाँ, दस लाइक,
और आत्मा खुद को महान समझ बैठती है।

हर कोई मंच पर खड़ा है,
पर भीड़ में बैठने को कोई तैयार नहीं,
सब अपनी-अपनी चीख़ें सुना रहे हैं,
पर ख़ामोशी सुनने वाला कोई नहीं।

किताबें छपती हैं,
पर पढ़ी नहीं जातीं—
क्योंकि यहाँ लिखना आसान है,
और पढ़ना सबसे कठिन तपस्या।

यह दौर शब्दों का नहीं,
अहंकारों का है,
यहाँ हर लेखक अमर होना चाहता है,
पर पाठक बनने से सबको डर लगता है।

सच यही है—
इस भीड़ में लेखक बहुत हैं,
कवि अनगिनत हैं,
पर पढ़ने वाला इंसान
सबसे दुर्लभ प्रजाति बन चुका है।

आर्यमौलिक 

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