6. क्या हर कोई सफल हो सकता है?


6. क्या हर कोई सफल हो सकता है?

📖 “ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।” — भगवद्गीता 4.11
🪔 जैसा भाव, जैसा प्रयास — वैसा ही फल।
🌼 एक ही अवसर दो लोगों को मिलता है, एक स्वयं को बदल लेता है, दूसरा वहीं ठहर जाता है।
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यह प्रश्न जितना सरल दिखता है, उतना ही गहरा और चुनौतीपूर्ण है — क्या हर कोई सफल हो सकता है?
लगभग हर मनुष्य के मन में यह सवाल कभी न कभी अवश्य उठता है, विशेषकर तब जब वह स्वयं को संघर्षों, असफलताओं और तुलना के जाल में घिरा हुआ पाता है। समाज में हम देखते हैं कि एक ही परिस्थिति में जन्मे, एक ही संसाधनों से आगे बढ़े दो लोगों में से एक असाधारण ऊँचाइयों को छू लेता है, जबकि दूसरा जीवनभर साधारण ही रह जाता है। तब मन में यह भ्रम पैदा होता है कि शायद सफलता कुछ चुनिंदा लोगों के लिए ही बनी है।

परंतु भगवद्गीता का सिद्धांत इस भ्रम को तोड़ देता है।
श्रीकृष्ण कहते हैं — “मनुष्य जिस भाव से मेरी शरण लेता है, मैं उसे उसी प्रकार फल देता हूँ।”
इसका तात्पर्य यह है कि ईश्वर, भाग्य या परिस्थितियाँ किसी के साथ भेदभाव नहीं करतीं; भेदभाव मनुष्य के प्रयास, दृष्टिकोण और संकल्प में होता है।
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सफलता क्या है?

सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि सफलता की परिभाषा क्या है?
क्या धन कमाना ही सफलता है?
क्या पद, प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि ही सफलता का प्रमाण है?

वास्तव में सफलता एक आंतरिक अनुभव है।
जो व्यक्ति अपने लक्ष्य की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है, आत्मसम्मान के साथ जीवन जी रहा है और अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन कर रहा है — वही वास्तव में सफल है।
हर व्यक्ति की सफलता अलग-अलग हो सकती है, पर संघर्ष से भाग जाना ही वास्तविक असफलता है।
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एक ही अवसर, अलग परिणाम — क्यों?

जीवन सभी को अवसर देता है।
कभी परीक्षा के रूप में, कभी व्यापार के रूप में, कभी रिश्तों के रूप में और कभी संकट के रूप में।
पर अंतर यहाँ पैदा होता है कि—

एक व्यक्ति अवसर को सीख मान लेता है

दूसरा उसे डर समझ बैठता है


एक व्यक्ति असफलता से सीखकर स्वयं को सुधारता है,
दूसरा असफलता को भाग्य का दोष मानकर प्रयास छोड़ देता है।

यही कारण है कि अवसर समान होते हुए भी परिणाम समान नहीं होते।
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प्रयास, पुरुषार्थ और कर्म

भारतीय दर्शन में सफलता का मूल मंत्र है — पुरुषार्थ।
गीता स्पष्ट कहती है — “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
अर्थात् मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में है, फल उसके हाथ में नहीं।

जो व्यक्ति फल की चिंता में डूब जाता है, उसका कर्म कमजोर हो जाता है।
और जो व्यक्ति कर्म पर ध्यान केंद्रित करता है, फल स्वयं उसके पीछे चल पड़ता है।

हर कोई सफल हो सकता है, यदि—

वह निरंतर प्रयास करे

आलस्य और भय से ऊपर उठे

स्वयं को परिस्थितियों का गुलाम न बनाए
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असफलता: शत्रु नहीं, गुरु

अधिकांश लोग असफलता से डरते हैं।
पर सच्चाई यह है कि असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है।

जिसने कभी गिरना नहीं सीखा, वह चलना कैसे सीखेगा?
जिसने हार नहीं देखी, वह जीत की कीमत कैसे समझेगा?

महापुरुषों के जीवन पर दृष्टि डालें —
हर महान सफलता के पीछे असंख्य असफलताएँ छिपी होती हैं।
अंतर केवल इतना है कि उन्होंने असफलता को अंत नहीं, प्रशिक्षण माना।
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भाग्य बनाम प्रयास

अक्सर लोग कहते हैं — “मेरा भाग्य खराब है।”
पर भाग्य क्या है?

भाग्य वास्तव में आपके पिछले कर्मों का परिणाम है,
और वर्तमान प्रयास आपके भविष्य के भाग्य का निर्माण करते हैं।

जो व्यक्ति केवल भाग्य को दोष देता है, वह अपने हाथ बाँध लेता है।
और जो व्यक्ति प्रयास को महत्व देता है, वह भाग्य को भी बदल देता है।
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क्या हर कोई एक जैसा सफल हो सकता है?

यहाँ एक महत्वपूर्ण सत्य समझना होगा —
हर कोई एक जैसा सफल नहीं हो सकता, पर हर कोई सफल हो सकता है।

ईश्वर ने सभी को समान बुद्धि, शक्ति और अवसर नहीं दिए,
पर सभी को प्रयास करने की स्वतंत्रता अवश्य दी है।

कोई बड़ा उद्योगपति बने, कोई श्रेष्ठ शिक्षक, कोई सच्चा किसान, कोई उत्तम साधक —
सफलता का स्वरूप अलग हो सकता है,
पर आत्मसंतोष और कर्तव्यनिष्ठा सभी के लिए समान है।
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सफलता का वास्तविक मार्ग

सफलता पाने का मार्ग कोई जादू नहीं है, बल्कि एक साधना है—

1. स्पष्ट लक्ष्य — बिना लक्ष्य के प्रयास दिशाहीन हो जाता है

2. अनुशासन — रोज़ थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ना

3. धैर्य — तुरंत फल न मिलने पर भी टिके रहना

4. आत्मविश्वास — स्वयं पर विश्वास ही सबसे बड़ा बल है

5. संयम और विवेक — भावनाओं में बहकर निर्णय न लेना
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निष्कर्ष

तो प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है —
हाँ, हर कोई सफल हो सकता है।
पर सफलता उन्हीं को मिलती है जो—

स्वयं को बदलने का साहस रखते हैं

परिस्थितियों को दोष नहीं देते

कर्म को पूजा और संघर्ष को साधना मानते हैं

ईश्वर का नियम अटल है —
जैसा प्रयास, वैसा परिणाम।
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