12. युवा जल्दी निराश क्यों हो जाता है?
📖 “क्लैब्यं मा स्म गमः” (भगवद्गीता 2.3)
🪔 कायरता मत अपनाओ।
🌼 पहली ठोकर में रुकने वाला आगे नहीं बढ़ता।
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आज का युवा एक अजीब विरोधाभास जी रहा है। उसके पास सुविधाएँ पहले से कहीं अधिक हैं, ज्ञान का भंडार उसकी मुट्ठी में है, तकनीक उसकी उँगलियों पर नाचती है, फिर भी वह भीतर से जल्दी टूट जाता है, जल्दी निराश हो जाता है। यह प्रश्न अत्यंत गम्भीर है कि जिस उम्र को ऊर्जा, साहस और सपनों की उड़ान का समय कहा जाता है, वही उम्र हताशा, अवसाद और आत्मविश्वास की कमी से क्यों घिरती जा रही है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं— “क्लैब्यं मा स्म गमः” अर्थात कायरता को मत अपनाओ। यह केवल युद्धभूमि का उपदेश नहीं है, यह जीवन के हर संघर्ष के लिए दिया गया शाश्वत संदेश है। आज का युवा जीवन की पहली ठोकर में ही रुक क्यों जाता है, यही समझने का प्रयास आवश्यक है।
1. अपेक्षाओं का बोझ
आज का युवा केवल अपने सपनों का भार नहीं ढोता, वह माता-पिता, समाज और व्यवस्था की अपेक्षाओं का बोझ भी उठाता है। बचपन से ही उसे बताया जाता है कि “तुम्हें अव्वल आना है”, “तुम्हें सफल होना है”, लेकिन यह नहीं सिखाया जाता कि असफलता भी जीवन का हिस्सा है। जब परिणाम अपेक्षा के अनुसार नहीं आते, तब युवा स्वयं को असफल नहीं बल्कि व्यर्थ मानने लगता है। यहीं से निराशा जन्म लेती है।
2. तुरंत सफलता की संस्कृति
सोशल मीडिया ने सफलता को कुछ तस्वीरों और रील्स में समेट दिया है। कोई विदेश घूम रहा है, कोई महंगी गाड़ी में बैठा है, कोई कम उम्र में बड़ा मुकाम पा चुका है—इन सबको देखकर युवा यह मान लेता है कि सफलता तुरंत मिलनी चाहिए। जब वास्तविक जीवन में परिश्रम के बाद भी परिणाम देर से आते हैं, तो वह खुद को पीछे छूटा हुआ समझने लगता है। धैर्य का अभाव उसे निराशा की ओर धकेल देता है।
3. असफलता का भय
हमारा समाज असफल व्यक्ति को स्वीकार नहीं करता। सफल होने वाले को सिर पर बैठाया जाता है और असफल को उपेक्षित किया जाता है। यही कारण है कि युवा असफलता से डरता है। वह जोखिम लेने से बचता है और जब कभी असफल हो जाता है तो उसे लगता है कि अब सब समाप्त हो गया। जबकि असफलता तो सफलता की पहली सीढ़ी होती है।
4. आत्मिक जुड़ाव की कमी
आज का युवा बाहरी दुनिया से तो जुड़ा है, पर अपने भीतर से कटता जा रहा है। धर्म, दर्शन और आत्मचिंतन को उसने पुराना या अनुपयोगी मान लिया है। जबकि गीता, उपनिषद और रामचरितमानस जैसे ग्रंथ मनुष्य को मानसिक दृढ़ता प्रदान करते हैं। आत्मिक आधार के बिना जब जीवन में झटका लगता है, तो व्यक्ति के पास संभलने की शक्ति नहीं बचती।
5. तुलना का जाल
आज का युवा अपने जीवन की तुलना दूसरों की उपलब्धियों से करता है, बिना यह जाने कि हर व्यक्ति की यात्रा अलग होती है। तुलना मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है। वह अपनी प्रगति को देखने के बजाय दूसरों की ऊँचाइयों को देखकर स्वयं को छोटा मानने लगता है। यह हीनभावना धीरे-धीरे निराशा में बदल जाती है।
6. संघर्ष से भागने की प्रवृत्ति
सुख-सुविधाओं में पले युवा को संघर्ष से डर लगने लगा है। उसे लगता है कि जीवन सरल होना चाहिए। जबकि जीवन स्वभाव से ही संघर्षमय है। श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध से भागने नहीं देते, क्योंकि वे जानते हैं कि संघर्ष से भागकर कोई समाधान नहीं मिलता। पहली ठोकर में रुक जाना वास्तव में कायरता है, जिसे गीता स्पष्ट रूप से नकारती है।
7. मार्गदर्शन का अभाव
आज के समय में युवा के पास जानकारी बहुत है, लेकिन सही मार्गदर्शन कम है। वह उलझनों में घिरा रहता है—करियर, रिश्ते, पहचान, उद्देश्य—सब कुछ अस्पष्ट। जब दिशा स्पष्ट नहीं होती, तो थोड़ी सी असफलता भी भारी लगने लगती है। सही गुरु या मार्गदर्शक के अभाव में वह भीतर ही भीतर टूटने लगता है।
8. आत्मविश्वास की कमी
लगातार आलोचना, तुलना और दबाव युवा के आत्मविश्वास को कमजोर कर देते हैं। वह अपने निर्णयों पर संदेह करने लगता है। आत्मविश्वास के बिना व्यक्ति हर कठिनाई को पहाड़ समझता है। जबकि विश्वास के साथ वही कठिनाई चुनौती बन जाती है।
समाधान क्या है?
गीता का संदेश आज के युवा के लिए संजीवनी है। “क्लैब्यं मा स्म गमः”—डर मत, भाग मत, स्वयं को कमजोर मत समझ। जीवन में गिरना स्वाभाविक है, पर गिरकर उठना ही मनुष्य की पहचान है। निराशा कोई स्थायी स्थिति नहीं है, यह केवल मन की अवस्था है।
युवा को यह समझना होगा कि—
असफलता अंत नहीं, अनुभव है
संघर्ष अभिशाप नहीं, साधना है
धैर्य कमजोरी नहीं, शक्ति है
और आत्मबल सबसे बड़ा संबल है
निष्कर्ष
युवा जल्दी निराश इसलिए हो जाता है क्योंकि उसने जीवन को समझने से पहले परिणाम चाह लिए हैं। उसने संघर्ष से पहले सफलता और साधना से पहले सिद्धि चाही है। गीता का उपदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है—कायरता मत अपनाओ, अपने भीतर के योद्धा को जगाओ। पहली ठोकर में रुकने वाला आगे नहीं बढ़ता, पर जो हर ठोकर से सीखता है, वही इतिहास बनाता है।
युवावस्था निराशा के लिए नहीं, निर्माण के लिए है। यदि युवा अपने भीतर विश्वास, धैर्य और साहस जगा ले, तो कोई भी परिस्थिति उसे तोड़ नहीं सकती। यही गीता का संदेश है, यही जीवन का सत्य।
क्रमशः
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