ये इश्क़ है


ये इश्क़ है साहब,
इसमें ज़िन्दगी का
रिस्क लेना पड़ता है—

यहाँ दिल गिरवी रखना होता है,
ख़्वाबों पर दस्तख़त करने पड़ते हैं,
और भरोसे की आग में
अपने डर को जलाना पड़ता है।

ये इश्क़ है साहब,
यह कोई सुरक्षित सौदा नहीं,
यहाँ जीत से ज़्यादा
हार की हिम्मत चाहिए।

कभी मुस्कान की बारिश मिलती है,
कभी तन्हाई की लम्बी रातें,
कभी सब कुछ मिल जाता है,
कभी खुद को ही खोना पड़ता है।

ये इश्क़ है साहब,
यह अक़्ल से नहीं चलता,
यह तो बस दिल की ज़िद है,
जो हर बार टूटकर भी
फिर से भरोसा करना सिखा देती है।

आर्यमौलिक 

Comments

Popular posts from this blog

शोर

ख़ामोशी