ख़ामोशी
ख़ामोशी
ख़ामोशी ने आज फिर
बहुत कुछ कह दिया,
जो लफ़्ज़ कहने से डरते थे
वो सब समझा दिया।
बोलते होंठ चुप रहे
तो क्या हुआ,
आँखों ने पूरी दास्तान
पढ़ा दी।
कुछ आवाज़ें
सुनाई नहीं देतीं,
मगर उम्र भर
कान में गूँजती रहती हैं।
ख़ामोशी कोई ख़ालीपन नहीं,
ये वो जगह है
जहाँ टूटे हुए
जुमले आराम करते हैं।
कभी-कभी
चुप रह जाना ही
सबसे ऊँची आवाज़ होती है।
आर्यमौलिक
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