मोहब्बत का अंत
मोहब्बत का अंत
ये मोहब्बत भी अजीब सी कहानी लगती है,
शुरुआत में रूहों की मिठास जुबानी लगती है।
नज़रें मिलें तो धड़कनें दोगुनी होने लगती हैं,
हर बात में ख़ुशबू, हर पल में रवानी लगती है।
पर वक़्त बदलता है तो रंग भी बदल जाते हैं,
मीठी बातें तीखी बनकर दिलों पे चल जाते हैं।
जो हाथ पकड़कर दुनिया से लड़ने चले थे,
वही बात-बात में एक-दूजे से ही उलझ जाते हैं।
शुरू प्यार से होती है, मुस्कानों की बारिश से,
ख़त्म झगड़ों से होती है, टूटे हुए जज़्बातों की खामोशी से।
दिल में जो नाज़ुक सा गुलाब था, वो मुरझा जाता है,
कभी-कभी तो रिश्ता बिना वजह ही बिखर जाता है।
फिर भी अजीब है ये मोहब्बत…
किसी दिन वही लोग दिल में फिर जगह बना जाते हैं,
जो कल तक दूरियों के सहारे हमें रुला जाते हैं।
क्योंकि प्यार का रंग चाहे जितना बदल जाए,
दिल चाह कर भी मोहब्बत करना नहीं भूल पाता है।
आर्यमौलिक
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