मोहब्बत की लकीर


मोहब्बत की लकीर


मोहब्बत की बहुत बड़ी लकीर थी मिरे हाथ में... I

जो मिट गयी मोहब्बत की पहली ही मुलाक़ात में... II

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मोहब्बत की बहुत बड़ी लकीर थी मेरे हाथ में,
किस्मत भी हैरान थी उस उजली सी बात में।

नज़रें मिलीं तो लगा जैसे सदियाँ ठहर गईं,
दिल ने कहा—यही है वो सुकून की रात में।

पर अजीब खेल खेलती है ये मोहब्बत भी अक्सर,
जो लिखा था उम्र भर, मिट गया एक ही मुलाक़ात में।

लफ़्ज़ अधूरे रह गए, खामोशी बोल गई,
हर जवाब डूब गया कुछ अनकही सी बात में।

हाथ की लकीरों ने भी मुँह मोड़ लिया मुझसे,
जब सच सामने आया पहली ही सौग़ात में।

अब न शिकवा है न ग़िला उस बेवफ़ा से,
बस एक दाग़ सा रह गया दिल की हर बात में।

आर्यमौलिक 

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